प्राण ऊर्जा और विद्युत ऊर्जा में समानता

प्राण ऊर्जा और  विद्युत ऊर्जा क्या एक ही ऊर्जा है या अलग अलग?

जिस प्रकार बिना प्राण ऊर्जा के हमारा शरीर किसी काम का नही होता ठीक उसी प्रकार बिना विद्युत् ऊर्जा के विद्युत् से चलने वाले उपकरण किसी कार्य के नही होते है। 

शरीर में प्राण ऊर्जा को बनाए रखने के लिए प्राण वायु यानी की स्वास की जरूरत होती है। इसी प्रकार उपकरण को चलाने के लिए विद्युत् ऊर्जा को बनाए रखने के लिए भी दूसरी तरह की ऊर्जा की जरूरत होती है। जैसे की वायु, ऊष्मा ऊर्जा, आदि।

यानी की हम दोनो ही स्थिति में एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में रूपांतरित कर रहे है।

जिस तरह शरीर में प्राण ऊर्जा को प्रवाहित करने में इड़ा (ऋणात्मक ऊर्जा) पिंगला ( धनात्मक ऊर्जा) और सुषुम्ना की महत्त्वपूर्ण भूमिका होता है। उसी प्रकार विद्युत ऊर्जा में भी इलेक्ट्रॉन ( ऋणात्मक ऊर्जा)  प्रोटोन (धनात्मक ऊर्जा) और न्यूट्रॉन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। 

आपने अगर वेद पुराणों को पढ़ा होगा तो उसमे कुण्डलिनी शक्ति के बारे में बताया गया है जो की साढ़े 3 फेरे लिए हुए सुप्त अवस्था में रहती है। कहा जाता है की इसमें ऊर्जा का अपार भण्डार होता है। कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। जब इड़ा और पिंगला दोनो स्वर एक साथ चलते हो इसे सुषुम्ना कहा जाता है। सुषुम्ना के वक्त योगिजन कुंभक रेचक और पूरक क्रिया करके कुण्डलिनी जागरण का अभ्यास करते है। इसी तरह विद्युत् की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए एक डिवाइस होती है जिसे ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है। जोकि अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।  इसके सिद्धांत के अनुसार जब एक कुंडली में प्रवाहित धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है तो इसके पास रखी अन्य कुंडली में प्रेरण के कारण विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। जिससे दूसरी कुंडली में भी धारा बहने लगती है। ट्रांसफार्मर का उपयोग प्रत्यावर्ती धारा वोल्टता में परिवर्तन के लिए किया जाता है। 

 



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